Editorial: एसवाईएल पर फिर बैठक तय, क्या निकल सकेगा कोई हल
- By Habib --
- Friday, 15 Dec, 2023
Meeting scheduled again on SYL
Meeting scheduled again on SYL :एसवाईएल नहर का मुद्दा अगर एक बार फिर जिंदा हो गया है तो इसकी वजह आम चुनावों की नजदीकी और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। बेशक, अभी दोनों में समय है, लेकिन राजनीति में बीज बहुत पहले से बोए जाने की शुरुआत हो जाती है और फिर अगर सब कुछ योजनाबद्ध हो तो फसल की कटाई से कोई नहीं रोक सकता। पंजाब एवं हरियाणा के बीच एसवाईएल के पानी को लेकर तकरार का दौर अंतिम चरण में पहुंच चुका है। हर बार एक नई बैठक की तारीख सामने आती है, लेकिन कोई सहमति हुए बगैर बैठक खत्म हो जाती है। अब केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के आग्रह पर 28 दिसंबर को एक बार फिर पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच चंडीगढ़ में बैठक प्रस्तावित की गई है। इस बैठक के लिए हरियाणा ने जहां उत्साह दिखाया है, वहीं पंजाब का तर्क है कि उसके पास देने को पानी नहीं है, तब वह कहां से पानी देगा। हालांकि इस बार हरियाणा का रुख कुछ और ही कहानी कह रहा है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ओर से कहा गया है कि प्रदेश ने कभी नहीं कहा कि उन्हें पूर्व के बंटवारे के हिसाब से ही पानी चाहिए। पानी का बंटवारा कम-ज्यादा हो सकता है, लेकिन विषय एसवाईएल नहर के निर्माण का है।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय एसवाईएल नहर के संबंध में पंजाब सरकार को आदेश दे चुका है। माननीय न्यायालय की यह टिप्पणी हालिया दिनों में सर्वाधिक सख्त टिप्पणी है कि आप इस मामले का समाधान करें वरना कोर्ट को कुछ करना पड़ेगा। निश्चित रूप से यह मामला समाधान की मांग कर रहा है, लेकिन राजनीति इसके आड़े आ रही है। कुछ समय पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों को मिल बैठ कर इस मामले का हल निकालने को कहा था, इसके लिए एक कोर कमेटी बनाने की भी सलाह दी गई थी, हालांकि पंजाब सरकार की ओर से तब भी यही कहा गया था कि उसके पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए एक बूंद पानी नहीं है। वास्तव में बीते समय के दौरान पंजाब सरकारों का रवैया ऐसा रहा है कि वे संविधान का पालन करती नजर नहीं आई, उन्होंने केवल अपने राजनीतिक हितों को ही सर्वोपरि रखा। साल 2004 में तो शिअद सरकार ने एसवाईएल और इस संबंध में अन्य ऐसे फैसलों को विधानसभा में कानून पारित कर एकतरफा रद्द ही कर दिया था। एसवाईएल के लिए जिस जमीन पर नहर बननी थी, वह जमीन उनके मालिकों को लौटा दी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस कार्रवाई को अवैध ठहरा चुका है।
एसवाईएल नहर के पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में पहले भी बैठक हो चुकी है। इसके अलावा दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में बैठक कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री अपने तौर पर दोनों राज्यों के साथ इस मसले को लेकर बैठक करते रहे हैं। लेकिन सारा मामला बैठकों तक ही सीमित रह जाता है। अब 28 दिसंबर को जब एक बार फिर इस मामले को लेकर बैठक निर्धारित की गई है तो पंजाब ने इसमें शामिल होने का तो आश्वासन दिया है, लेकिन उसका यह स्टैंड कायम है कि उसके पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए पानी नहीं है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार को इस मामले के संबंध में जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में अपना जवाब देना है। केंद्र सरकार चाहती है कि इस मसले का कोई समाधान हो। अगर बैठकों के लिए रजामंदी जताई जा रही है तो यही कहा जाएगा कि दिल मिलें न मिलें, हाथ तो मिलाते रहने ही चाहिए।
दरअसल, एसवाईएल पंजाब के लिए नाक का सवाल है, बेशक पंजाब के मुख्यमंत्री यह कहते रहें कि राज्य के पास पानी ही नहीं है तो वह देगा कहां से। हालांकि यह तय है कि अगर पानी उपलब्ध हो तो भी इसकी बहुत कम संभावना है कि पंजाब इसे हरियाणा के साथ बांटेगा। अब लगता है, सारा दारोमदार सर्वोच्च न्यायालय पर आ गया है। इस मामले पर दोनों राज्यों में राजनीति अपने चरम पर है। पंजाब के मुख्यमंत्री के किसी भी दावे को राज्य का विपक्ष स्वीकार करता नहीं दिखता, हालांकि कुछ नई बातें और जोड़ दी जाती हैं। इसी प्रकार से हरियाणा में भी विपक्ष इस बैठक के आयोजित किए जाने पर ही सवाल उठा रहा है। देश संविधान से चल रहा है, ऐसे में एक मामला जब सर्वोच्च न्यायालय की दहलीज पर चढ़ कर भी इस प्रकार अनसुलझा रह रहा है तो यह व्यवस्था पर बड़ा सवाल है।
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